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Wednesday 15 October 2014

समाज की सभी समस्याओं का निराकरण, मौलिक अधिकारों में - श्री दुबे

समाज की सभी समस्याओं का निराकरण, मौलिक अधिकारों में - श्री दुबे
प्रोग्राम लेसन इन लॉ पर कार्यशाला सम्पन्न
जिला अधिकारियों ने जाने मौलिक कर्त्तव्य
न्यायाधीश श्री गौरीशंकर दुबे और श्री गंगाचरण दुबे ने दी जानकारी




खण्डवा (13,अक्टूबर,2014) - सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा सोमवार को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। कलेक्ट्रेट सभागृह में आयोजित कार्यशाला में सभी जिला अधिकारियों ने अपने मौलिक कर्त्तव्यों को जाना। साथ ही संवेदनशीलता के साथ अपने दायित्वों के निर्वहन में कर्त्तव्यों की पालना के महत्व को समझा। प्रोग्राम लेसन इन लॉ विषय पर आयोजित कार्यशाला में सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण श्री गंगाचरण दुबे ने अपने मौलिक कर्त्तव्यों की जानकारी एवं महत्व को बताया। उन्होंने कहा कि यदि हम समाज की समस्याओं की बात करे। तो समाज की सभी समस्याओं का निराकरण संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्त्तव्यों में है।  इसलिए हमें देश के संवेधानिक कर्त्तव्यों के प्रति संवेदनशील होकर कार्य करना होगा। 
इसके साथ ही कार्यशाला में विशेष न्यायाधीश श्री गौरीशंकर दुबे ने सभी जिला अधिकारियों से 6 दिसम्बर को आयेाजित होने वाली नेशनल लोक अदालत में बढ़चढ़ कर उनके विभागों से जुड़े प्रकरणों का निराकरण करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यह भी हमारा नैतिक कर्त्तव्य है। अधिक से अधिक लोगों को हम योजनाओं का सार्थक लाभ दे। 
इस अवसर पर कार्यशाला में कलेक्टर श्री महेश अग्रवाल ने भी मौलिक कर्त्तव्यों की जानकारी देते हुए आगामी 6 दिसम्बर को आयोजित होने वाली नेशनल लोक अदालत में अधिक से अधिक लोगों को लाभान्वित करने का भरोसा दिलाया। साथ ही उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम हितग्राहियों को एक-एक पौधा उपहार स्वरूप जरूर देगें। 
इस अवसर पर जिला पुलिस अधीक्षक श्री मनोज शर्मा, सीईओ जिला पंचायत अमित तोमर , और अपर कलेक्टर एस एस बघेल भी उपस्थित थे। 
51 क. मूल कर्तव्य - भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह -
(क) संविधान का पालन करें और उनके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।
(ख) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करें।
(ग) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
(घ) देश की रक्षा करे और आह्यान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
(ड.) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरूद्ध है। 
(च) हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परीक्षण करे।
(छ) प्राकृतिक पर्यावरण की, जिनके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
(ज) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
(´) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊॅंचाइयों को छू ले।
यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।

1 संविधान (बयालीसवॉं संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 11 द्वारा (3-1-1977 से) अंतः स्थापित।
2 संविधान (छियासीवॉं संशोधन) अधिनियम, की धारा 4 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंतः स्थापित किया जाएगा। 
क्रमांक/42/2014/1559/वर्मा

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