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Wednesday 19 December 2018

किसान भाईयों के लिए उपयोगी सलाह

किसान भाईयों के लिए उपयोगी सलाह

खण्डवा 19 दिसम्बर, 2018 - अरहर की फसल के लिए चित्तीदार फली भेदक के नियंत्रण हेतु प्रोफेनोफाॅस 50 ई.सी. 2 मिली. प्रति लीटर या मीथोमाइल 40 एस.पी. 0.6 मिली. प्रति लीटर या डी.डी.वी.पी. 76 ई.सी. 0.5 मिली. प्रति लीटर का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। उप संचालक कृषि श्री आर.एस. गुप्ता ने किसान भाईयों को सलाह दी कि वे गेहूं फसल के लिए बुवाई के 18 से 21 दिन क्राउन रूट इनीसिएसन स्टेज पर सिंचाई अवश्य करें। देरी से बुवाई की दशा में बीज की अनुशंसित मात्रा से 20 से 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बढ़ाकर बुवाई करे। सिंचित दशा में देरी से बोने हेु उपयुक्त पछेती प्रजातियां एच.आई. 1418, एम.पी. 4010 जे.डब्ल्यू. 1202, जे.डब्ल्यू. 1202, एच.डी. 2932 , एम.पी. 3366, राज 4238 इत्यादि किस्मों का चयन क्षेत्र की अनुकूलता के आधार पर करें। गेहूं में यूरिया का उपयोग सिंचाई उपरान्त ही करे, जिससे कि नत्रजन का समुचित उपयोग हो सके। उन्होंने बताया कि चना फसल के लिए 20 से 25 से.मी. की हो जाए तो खुटाई अवश्य करें, जिससे कि पौधो पर अधिक शाखाएँ निकले और उपज में वृद्धि हो। चना की खुटाई बुवाई के 30 से 40 दिनों के भीतर पूर्ण करे तथा 40 दिन बाद नहीं करनी चाहिए।
उपसंचालक कृषि श्री गुप्ता ने चना उत्पादक किसानों को सलाह दी है कि सिंचित दशा में चने में पहली सिंचाई शाखाएं बनते समय तथा दूसरी सिंचाई फली बनते समय देना चाहिए। चने में फूल बनने की सक्रिय अवस्था में सिंचाई नहीं करनी चाहिए सिंचाई हल्की करे। सिंचाई स्प्रिंकलर द्वारा की जा सकती है। प्रायः चना की खेती असिंचित दशा में की जाती है। यदि पानी की सुविधा हो तो फली बनते समय एक सिंचाई अवश्य करें। चने के खेत में कीट नियंत्रण हेतु ‘टी‘ आकार की खूंटिया 35 से 40 हेक्टेयर लगाये। चने की फसल में चने की इल्ली का प्रकोप आर्थिक क्षति स्तर तक पहुंच जाये तो इसके नियंत्रण हेतु क्यूनाॅलफाॅस या प्रोफेनोफाॅस कीटनाशी दवा को 2 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में घोट बनाकर छिड़काव करें। उन्होंने कहा कि मटर की फसल में एक या दो सिंचाई की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई के 45 दिन बाद तथा दूसरी यदि आवश्यकता हो तो फली बनने के समय देना चाहिए। मटर की फसल की पत्तियों पर धब्बे दिखाई दे तो मेन्काजेब 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम व मेन्काजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अलावा मसूर फसल में पहली निंदाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद तथा दूसरी 45 से 60 दिन बाद करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। 
उपसंचालक कृषि श्री गुप्ता ने बताया कि सिंचित क्षेत्रों में सामान्यतः बुवाई के 45 से 60 दिन बाद एक हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल में फूल व फलियां बनने की  अवस्था में सिंचाई करने से फसल की हानि होती है। मसूर फसल पर एन.पी.के. 19ः19ः19 जल विलेय उर्वरक को फूल आने से पहले और फली बनने की अवस्था पर 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे कि उपज में वृद्धि हो सके। इसी प्रकार सरसों प्रथम सिंचाई बोने के 25 से 30 दिन बाद, दूसरी सिंचाई 60 से 65 दिन बाद तथा तीसरी सिंचाई 80 से 85 दिन बाद करना चाहिए। उन्होंने बुवाई के 30 से 35 दिन के अंदर निंदाई गुडाई करनी चाहिए तथा कतारों से पौधो को निकालकर पौधो की दूरी 10 से 15 सेन्टीमीटर रखना चाहिए  जिससे पौधो का विकास अच्छा हो। उन्होंने सामान्य सिंचाई हेतु स्प्रिंकलर, रैन-गन, ड्रिप इत्यादि का उपयोग करे जिससे सिंचाई के जल का समुचित उपयोग हो सके। रबी दलहन में हल्की सिंचाई 4 से 5 सेन्टीमीटर करनी चाहिए क्योंकि अधिक पानी देने से अनावश्यक वानस्पतिक वृद्धि होती है एवं दाने की उपज में कमी आ जाती है। रबी फसलों की पत्तियों पर धब्बे दिखाई दे तो मेन्काजेब 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम व मेन्काजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करे। दलहनी व अन्य अनाज वाली फसलों पर एन.पी.के. 19ः19ः19 जल विलेय उर्वरक को फूल आने से पहले और फली व बाली बनने की अवस्था पर 5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए जिससे कि उपज में वृद्धि हो सके। 

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