AAPKI JIMMEDARI

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Saturday 22 February 2014

नवाचारी पहल.... नवाचार ने बदली किसानों की तकदीर----- कम लागत में समृृद्ध हुआ किसान ----जिले के तकरीबन 200 किसानों ने श्री विधि से किया गेहूँ बेहतर उत्पादन..

जिला जनसंपर्क कार्यालय, खंडवा
समाचार
सफलता की कहानी
नवाचारी पहल
नवाचार ने बदली किसानों की तकदीर
कम लागत में समृृद्ध हुआ किसान
जिले के तकरीबन 200 किसानों ने श्री विधि से किया गेहूँ बेहतर उत्पादन







खंडवा - ( 22 फरवरी 2014) कोई भी व्यक्ति जब परम्परागत पद्धति से हटकर किसी नवाचार की शुरूआत करता हैं, तो शुरू में आस-पास के लोग उसमें मजाक उड़ाये यह लाजमी हैं। लेकिन जब वही काम एक सफल कार्य में तब्दील हो जाता हैं, तो लोग न सिर्फ उसकी तारीफ करते हैं, बल्कि उसका अनुसरण भी करते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया खंडवा जिले के तकरीबन 200 किसानों ने जिन्होनें किसान कल्याण तथा कृृषि विकास विभाग के अंतर्गत संचालित आत्मा परियोजना के अधिकारियों के मार्गदर्शन में गेहूँ के बीजो का बीजोपचार करके उसके बोने की तकनीक में बदलाव का नवाचारी प्रयास किया। शुरू में तो उनकी लोगों हंसी उड़ाई। लेकिन आज उनके बेहतर उत्पादन को देखने के लिये आस-पास के ग्रामों के किसान भी उनके खेतों में पहुंचकर इसकी विधी जानने के साथ ही उसका अनुसरण करना चाहते हैं।
    यह सबकुछ संभव हो पाया हैं इन किसानों के द्वारा कृषि विस्तार सुधार कार्यक्रम आत्मा के अंतर्गत श्री विधी से गेहँू की खेती करके। यह श्री विधी गेहँू की खेती करने का एक नवाचारी तरीका हैं। जिसमें धान की श्री विधी सिंद्धातों का पालन करके अधिक उपज प्राप्त की जाती हैं। इसमें फसल की देखभाल सामान्य गेहूँ की फसल की तरह ही की जाती हैं। यह विधी लघु एवं सीमांत किसानों के लिये वरदान हैं। जिसका की उपयोग जिले के खंडवा विकासखण्ड के 25 किसानों ने, हरसूद विकासखण्ड के 30 किसानों ने, छैगांव विकासखण्ड के 20 किसानों ने, पंधाना विकासखण्ड के  30  किसानो समेत  जिले के तकरीबन 200 किसानों ने किया हैं।
आत्मा की सुनी आवाज:- कृृषि विस्तार सुधार कार्यक्रम आत्मा के तहत किसानों के लिये लगाई जाने वाली चौपाल में श्री विधी से गेहूँ की खेती करके की तकनीक के बारे में हिरालाल, अश्विन और जीवन जैसें किसानों ने सुना तो उन्होनें सोचा कि क्यों न इसे अपनाये तब कृृषि अधिकारियों ने सहयोग और स्वयं पर विश्वास कर अपने इस नवाचार को किया। आज अपने इस निर्णय पर प्रसन्न किसान बेहतर उत्पादन देख रहे हैं।
पहले 50 कि.ग्रा. अब 10 कि.ग्रा.:- बीज बोने की इस पद्धति में बदलाव करने से किसानों का ना सिर्फ उत्पादन बड़ा हैं। बल्कि उनकी लागत भी कम लग रही हैं। जिले के रोहणी गांव में किसान हिरालाल जोगेश्वर, केलारी के किसान अश्विन सैनी और तलवड़िया गांव के जीवन ठाकुर ने बताया कि पहले जहां 1 एकड़ खेत में 50 कि.ग्रा. बीज बोना होता था। जिससे की महज 6-8 क्विंटल अनाज का उत्पादन होता था। लेकिन अब जब हमने इस नई प्रभावी पद्धति द्वारा कृषि अधिकारियों के मार्गदर्शन में वही सामान्य बीज नई तकनीक से उपचारित कर बोये तो हमें महज 1 एकड़ में सिर्फ 10 कि.ग्रा. बीज बोने पडे़। जिसके बाद आई फसल से हमें तकरीबन 1 एकड़ में 18-20 क्विंटल अनाज उत्पन्न हुआ हैं।
आर्गेनिक है यह खेती:- वर्तमान दौर में जब बड़ी-बड़ी कंपनियाँ जैविक अनाज, मसालों के नाम पर मोटी कीमत वसूल रहें हैं। ऐसे में खंडवा जिले के विभिन्न गाँव के इन 100 किसानों का प्रयोग भी हानिककारक केमिकल से पूरी तरह से मुक्त हैं। एक-एक बीज उत्पादन की इस पद्धति में बीज को पोषण से भरपूर बनाने के लिये बीजों को गौमूत्र, गुड़ जैसी घरेलू देशी पदार्थो का उपयोग बीजों को उपचारित किया जाता हैं।
बीज उपचार करके बीज में आने वाले रोगों से फसल को बचाया जाता हैं
यह है संपूर्ण प्रक्रिया
बीज उपचार करने की विधि इस प्रकार हैं:- 10 किलो बीज में से मिट््टी, कंकड़ एवं खराब बीजों को अलग छाँट लेते हैं। 20 लीटर पानी एक बर्तन में सुसुम या गुनगुना तक गरम करते हैं। छाँटे गयें बीजों को इस सुसुम या गुनगुने पानी में डाल दिया जाता हैं इसके बाद पानी के ऊपर तैर रहे बीजों को छान कर हटा देते हैं इस पानी में 5 किलो केचुआ खाद, 4 कि.ग्रा. गुड़, 4 लीटर गौमूत्र मिलाकर 8 घण्टे के लिये छोड़ देते हैं। 8 घण्टे बाद इस मिश्रण को एक कपडे़ से छान लें जिससे बीज एवं अन्य मिश्रण घोल से अलग हो जाये। बीज एवं अन्य मिश्रण में बाविस्टीन/कार्बेण्डाजिम 20 ग्राम मिलाकर 12 घण्टे के लिये अंकुरित होने के लिये गीले बोरे में बाँधकर छोड़ देें। इसके बाद अंकुरित बीज को बोने के लिये इस्तेमाल किया जाता हैं। इस तरह बीज उपचार बीज के बढ़ने की शक्ति को बढ़ाता हैं और वे तेजी से बढ़ते हैं इसे प्राईमिंग भी कहते हैं।
खेती की तैयारी:- खेती की तैयारी सामान्य गेहूँ की तरह ही करते हैं जिनमें -
ऽ    गोबर की खाद 20 क्विंटल अथवा केंचुआ खाद 4 क्विंटल प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए।
ऽ    अगर खेत में पर्याप्त नमी नही हैं तो बुआई से पहले एक बार पलेवा अवश्य करना चाहिए।
ऽ    अंतिम जुताई के पहले 27 किलो डीएपी, 13.50 किलो पोटाश खाद प्रति एकड़ खेती में छींटकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला दें।
श्री विधि से बीज की बुआई:- बुआई के समय खेत में अंकुरण के लिये पर्याप्त नमी होना चाहिए। क्योंकि जो अंकुरित बीज लगाए जा रहे हैं, अगर उनमें पर्याप्त नमी नहीं होगी तो अंकुर सूख जाएंगे। बीजों को 8 इंच की दूरी पर लगाया जाता हैं। इसके लिये एक पतले कुदाल या देशी हल से 8 इंच की दूरी पर 1 से 1.5 इंच गहरी नाली बनाते हैं और 8 इंच की दूरी पर 2 बीज डालते हैं। इसके बाद मिट्टी से ढक देते हैं।
फसल की देखभाल, सिंचाई, कोनोवीडर से खरपतवार की निकासी एवं खाद प्रबंधन:- बुआई के 15 से 20 दिन में आवश्यकतानुसार एक सिंचाई देना जरूरी हैं क्योंकि इसके बाद से पौधों में नई जडे़ शुरू हो जाती हैं। अगर जमीन में नमी न हो तो पौधा नई जडे़ नहीं बना पाता हैं तथा पौधें की बढ़वार रूक जाती हैं। सिंचाई के बाद 40 किलो यूरिया या 4 क्विंटल वर्मीकम्पोस्ट को मिलाकर छींट दें। सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद जब खेत में चलने लायक हो जाये तो पतले कुदाल या कोनोवीडर चलाकर मिट्टी को ढीला करें। कोनोवीडर चलाना अतिआवश्यक है इससे एक ओर जहाँ मिट््टी पोली हो जाती हैं जिससे पौधों की जड़ों को जमीन में नीचे जाने में मद्द मिलती है वहीं खरपतवार कटकर मिट्टी से मिलकर सड़कर खाद का काम करते हैं। इस प्रकार कोनोवीडर चलाने से गेहूँ के पौधों की जड़ों को लम्बा होने में मद्द मिलती हैं और वे मिट्टी से ज्यादा पोषक तत्व व नमी प्राप्त करते हैं।
सिंचाई व्यवस्था:- क्यारी बनाकर सिंचाई करें, लंबी तरी द्वारा सिंचाई करने से पानी का दुरूपयोग होता हैं। यदि डीªप उपलब्ध हो तो उसका प्रयोग भी कर सकते हैं।
बुआई के 25 दिन बाद पौधों की देखभाल:- बुआई के 25 से 30 दिन बाद आवश्यकतानुसार दूसरी सिंचाई देना चाहिए क्योंकि इसके बाद से पौधों में नए कल्ले तेजी से आने शुरू हो जाते हैं और नए कल्ले बनने के लिये पौधों को अधिक नमी एवं पोषण की जरूरत होती हैं सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पुनः मिट्टी को ढीला करने एवं खरपतवार निकासी हेतु कोनोवीडर चलाना अतिआवश्यक हैं। कोनोवीडर चलाने से खरपतवार पर नियंत्रण होता है एवं मिट्टी पोली होने से अधिकाधिक कल्ले बनने में भी मद्द मिलती हैं। जिले के जिन किसानों ने कोनोवीडर बराबर चलाया है उनकी फसल कोनोवीडर न चलाने वाले किसान की फसल की तुलना में दुगने पल्ले पायें गये हैं।
बुआई के 40 दिन बाद पौधों की देखभाल:- बुआई के 40 से 50 दिने बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए। इसके बाद से पौधें में तेजी से बडे़ होते हैं साथ ही नए कल्ले भी आते रहते है। इसके लिये पौधों की अधिक नमी एवं पौषण की जरूरत होती हैं। इसलिये सिंचाई के तुरन्त बाद 15 किलो यूरिया, 13 किलो पोटाश प्रति एकड़ जमीन के हिसाब से छिड़काव करें। सिंचाई के 2 से 3 दिन बाद पुनः अंतिम बार कोनोवीडर मशीन का उपयोग खरपतवार निकासी एवं जमीन को ढीला करने हेतु किया जाता हैं। इससे जड़ों को हवा मिलती हैं एवं पौधें तेजी से बढ़ने लगते हैं।
बुआई के 60 दिन बाद फसल की देखभाल:- गेहूँ की फसल में अगली सिंचाई 60 वें, 80 वें एवं 100 दिन बाद आवश्यकतानुसार की जाती हैं। इस समय सिंचाई मिट्टी के प्रकार एवं मौसम पर निर्भर करता हैं। ध्यान देने की बात यह है कि फूल आने के समय एवं दानों में दूध भरने के समय पानी की कमी नही होनी चाहिए नही तो उपज में काफी कमी आती हैं।
श्री विधि से गेहूँ की उपज:- 55-64 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज प्राप्त हुई हैं।
ध्यान देने योग्य बातें:-
ऽ    सिंचाई जल की आवश्यकता अनुसार उपयुक्त किस्म चुनाव करें।
ऽ    सूखे खेत में बुवाई के पश्चात पाटा न चलाये इससे अंकुरण कम हो जाता हैं।
ऽ    खाद व बीज कभी भी एक साथ मिलाकर न बोयें, इसमें अंकुरण कम होता हैं।
ऽ    फसल अवशेष जलाये नहीं उनकी खाद बनायें।
ऽ    फसल पकते समय अधिक सिंचाई देने से दाना दूधिया हो जाता हैं, जिससे उपज कम हो जाती हैं तथा बाजार मूल्य कम मिलता हैं।

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