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Wednesday 18 December 2013

आकाषवाणी इन्दौर की साहित्यिक संगोष्ठी ’’सृजन की सार्थकता’’ में हुआ विचार विमर्ष का प्रवाह

आकाषवाणी इन्दौर की साहित्यिक संगोष्ठी ’’सृजन की सार्थकता’’ में हुआ विचार विमर्ष का प्रवाह







खंडवा (18 दिसम्बर) - आकाषवाणी इन्दौर के तत्वावधान में सृजन की सार्थकता विषयक संगोष्ठी के प्रथम दिवसीय आयोजन में खण्डवा के गौरीकुन्ज सभागृह में सुधी श्रोताओं ने देष के ख्याती प्राप्त साहित्यकारों से कथा, कहानी और कविताओं के सृजन की सार्थकता पर बेबाक और सारगर्भित विचार सुने और उन्हें सराहा।
    कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। तत्पष्चात् आकाषवाणी इन्दौैर के संगृहालय से प्राप्त देष के मूर्धन्य रचनाकारों के स्वरों में उनकी रचनाओं के अंष सुनवाये गये। सर्वप्रथम पं0माखनलाल चतुर्वेदी का कवितापाठ पश्चात् महादेवी वर्मा से बातचीत के अंष, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कि प्रसिद्ध कविता राम की शक्ति पूजा पद्म श्री डाॅ0षिवमंगलसिंह सुमन के स्वर में, सुमित्रानंदन पंत का कविता पाठ और हरिवंषराय बच्चन की आवाज में कविता पाठ सुनवाया गया। इन दुर्लभ आवाजों को सभागृह में उपस्थित सभी सुधी श्रोताओं ने सराहा।
इस आयोजन की रूपरेखा पर जानकारी देते हुए आकाषवाणी इन्दौर की कार्यक्रम प्रमुख डाॅ.रेखा वासुदेव ने कहा - आगत का हम स्वागत करते है और विगत कि पूंजी को हम सजोकर रखते है। वहीं पूंजी इतिहास, पुराण, साहित्य, संस्कृति, विज्ञान आदि के रूप में हमारी धरोहर होती है। जिस समाज कि यह पूंजी जितनी समृ़़द्ध होती है उसकी नींव उतनी ही मजबूत होती है साथ वो संसार के सामने दृढ़ता से प्रस्तुत भी होती है। सामाजिक, सांस्कृतिक और कला साहित्य के नवनिर्माण के लिए सृजन की नितांत आवष्यकता होती हैे। आज का सृजन किस दिषा में जा रहा है, वो समाज के बदलते परिदृष्य को किस रूप में ले रहा है। इसी विचार बिन्दुओं को इस संगोष्ठी में उठाया गया है।
संगोष्ठी के आरंभ में वरिष्ठ साहित्यकार विजय बहादुर सिंह ने कहा सजृन एक स्वभाव है इसलिए अपने स्वभाव की अभिव्यक्ति करना ही आनन्द है और आनन्द ही रस है। सभ्यता हमें हमेषा अपने स्वभाव से दूर ले जाती है और कलाए हमें स्वभाव के नजदीक ले जाती है। स्वभाव ही सौन्दर्य है। कलाओं से सामाजिक परिवर्तन की मांग की जाने लगी है और वह जरूरी भी है। वास्तव में कला यहाँ जीवन से जुड़ी हुई है। वरिष्ठ रचनाकार ध्रुव शुक्ल ने वर्तमान परिदृष्य में सृजन की महत्ता पर अपनंे विचार प्रकट करते हुए कहा - इस तेजी से बदलती दुनियां में हम अपने सृजन को सिर्फ साहित्य और कलाओं पर ही सीमित नहीं रख सकतें। हमें अपनी सृजन की सार्थकता को संस्कृति राजनीति और बाजार के संदर्भ में देखना होगा। तेजी से बदलते जाते भारत का गठन प्राचीनकाल में उसके धर्म, संस्कृति दर्षन, साहित्य और स्थापत्यों ने किया है। हमारा देष सदियों से एक सजृनषील आत्मा की प्राप्ति के लिए प्रत्येंक मनुष्य के बिखरे हुए मन का संगठन करता आया है। पर अब विष्वव्यापी कामनाओं के विस्तार ने इस बिखराव को और बढा दिया है। वहीं वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामप्रकाष त्रिपाठी ने कहा कि लिखना या सृजन करना पूरी तरह स्वतंत्र कर्म नही हैं। लेखन सामाजिक प्रक्रियां है। रचनाकार यथार्थ का पुर्नस्वप्न करता है। सृजन की सार्थकता तभी है जब हमारे समय के सृजक समाज में वैसी ही भूमिका का निर्वाह करे जो हमारे सुफिया, भक्त कवियों और कबीर जैसे संतों ने निभाई है।
संगोष्ठी में अपने शब्दों के प्रवाह से वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 गीता नायक, श्री बहादुरसिंह परमार और पद्मश्री रमेषचन्द्र शाह ने सुधी श्रोताओं को सारगर्भित उद्बोधन देकर बाधें रखा। कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे आकाषवाणी इन्दौर के उद्घोषक विद्याधर मुले। 
स्वातंत्र्यवीर साहित्यकार पं.माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मस्थली पर आयोजित संगोष्ठी की प्रथम संध्या में हाल में उपस्थित सुधि श्रोताओं ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से यह सिद्ध किया, कि आकाषवाणी  के आयोजन और उसके कार्यक्रम आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाऐ हुऐ हैं। महानगर से निकलकर छोटे नगरों और कस्बों तक आकाषवाणी ने आज भी अपनी पहचान को अक्षुण्य रखा है। और श्रोताओं के प्रति अपने दायित्वों को निबाहने में तत्परता दिखाई है।
आज निमाड़ के साहित्यकार करेंगे विचार विमर्श:- आज 19 दिसम्बर 2013 की संध्या पुनः निमाड़ के साहित्यसेवी जुटेंगे और वर्तमान परिदृष्य में काव्य सृजन पर विमर्ष करेगें। आज कि संगोष्ठी के आमंत्रित साहित्यकार हैं - डाॅ. नीरज दीक्षित, श्री गोविन्द गुंजन, डाॅ. प्रताप राव कदम, श्री सुनील चैरे ’’उपमन्यु’’, श्री अषोक गीते,  श्री भालचन्द जोषी,  श्री राघवेन्द्र सिंह राघव, श्री प्रमोद त्रिवेदी ’पुष्प’।
  कार्यक्रम के अंत में आभार प्रदषर््िात करते हुवे आकाषवाणी इन्दौर के कार्यक्रम अधिकारी श्री सिद्धनाथ सोलंकी ने कहा साहित्यप्रेमी खण्डवा के श्रोताओं ने आकाषवाणी के इस आयोजन में भरपूर सहयोग देकर इस आयोजन को सफल बनाया है। आकाशवाणी का पुनः खण्डवा के सभी नगर वासियों कों सादर आमंत्रण है।
टीप:- फोटो मेल की गई हैं।
                 क्रमांकः 90/2013/1383/वर्मा

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