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Friday 6 November 2015

दलहनी एवं तिलहनी फसलों में उर्वरक के प्रयोग के संबंध में सलाह

दलहनी एवं तिलहनी फसलों में उर्वरक के प्रयोग के संबंध में सलाह

खण्डवा 6 नवम्बर,2015 - उप संचालक कृषि श्री ओ.पी.चोरे ने जिले के  किसानों  को सलाह दी है कि दलहन एवं तिलहनी फसलों में जिप्सम का उपयोग करने से फास्फोरस, सिलिका, मैग्नीशियम एवं पोटॉश की उपलब्धता बढ़ती है तथा मृदा में उपलब्ध क्षारों का विषैला प्रभाव कम होता हैं। जिप्सम का उपयोग फूल आते समय फसलों के चारों ओर छिड़क कर भी किया जा सकता है। 
       सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली जैसे स्प्रिंक्लर, रेनगन, ड्रिप का उपयोग करने से 30 से 70 प्रतिशत जल की बचत होती है वहीं असमतल जमीन में पानी का समान व समुचित उपयोग होता है। भू उपचार हेतु ट्राइक्रोडर्मा विरड़ी एवं जैव उर्वरक कल्चर की सिफारिश की गई मात्रा 5 लीटर जल में घोल बनाकर 100 कि.ग्रा. पकी देशी खाद अथवा नाडेप खाद या वर्मी कम्पोस्ट में समान रूप से घोल को मिलाकर शाम के समय बुवाई के पूर्व खेत में छिडकाव करें। यदि किसान भाई एक से अधिक कृषि रसायन से बीज उपचार करना है तो सर्वप्रथम फुूंद नाशक उसके बाद कीटनाशक और अंत में जैव उर्वरक से बीज उपचार करें। उपचारित बीज 30 मिनट पश्चात् बुवाई के लिये तैयार हो जाता है। यूरिया के अधिकतम् एवं दक्ष उपयोग हेतु नीम लेपित यूरिया का प्रयोग करें या 6 कि.ग्रा यूरिया के साथ 1 कि.ग्रा. खली का मिश्रण बनाकर यूरिया का उपयोग टॉप ड्रेसिंग के लिये करें। 
      दलहनी फसलों में इल्ली से बचाव हेतु चिडि़यों के बैठने के लिये अंग्रेजी के अक्षर ‘‘टी‘‘ के आकार की लगभग 4 फुट लंबी 20-25 खूटियाँ प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। किसान भाई अधिक जानकारी के लिये अपने ग्रामीण कृषि विस्तार अधिकारी या विकासखण्ड स्तर पर संबंधित वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी कार्यालय में सम्पर्क कर सकते है तथा किसान कॉल सेन्टर के टोल फ्री नंबर 1800-180-1551 पर भी किसान भाई परामर्श ले सकते है।

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