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Wednesday 21 October 2015

मौसम प्रतिकूलता व उपलब्ध संसाधनों के अनुसार कार्ययोजना बनावें - डॉ. श्रीवास्तव

मौसम प्रतिकूलता व उपलब्ध संसाधनों के अनुसार कार्ययोजना बनावें 
                                                                                                                                        - डॉ. श्रीवास्तव
कृषि विज्ञान केन्द्र, खण्डवा की सलाहकार समिति की बैठक सम्पन्न 



खण्डवा 21 अक्टूबर,2015 - कृषि विज्ञान केन्द्र की सलाहकार समिति की रबी मौसम की बैठक बुधवार को सम्पन्न हुई। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि राजामाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, ग्वालियर के निदेषक विस्तार डॉ. एस. के. श्रीवास्तव थे । इस बैठक में बी. एम. कृषि विष्वविद्यालय के प्रधान वैज्ञानिक डा. पी.पी.ष्षास्त्री, सहायक संचालक आत्मा श्री पटेल, उद्यानिकी विभाग के श्री टी.के पॅवार, कृृभको के श्री ए.के.गुप्ता, एनएफएल के श्री उज्जैनिया, मत्स्य विभाग के सहायक संचालक, कृषि अभियांत्रिकी के श्री षुक्ला, पषुपालन के श्री पटैरिया, प्रगतिषील कृृषक श्री मलखान,  श्री भगवान पटेल एवं महिला उद्यमी सुश्री रजनी बंसल, के साथ सामाजिक न्याय विभाग के प्रतिनिधि, मिटट्ी परीक्षण अधिकारी श्री विजय जाट, मृदा संरक्षण अधिकारी श्री निगवाल एवं कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने भाग लिया।   
इस अवसर पर कार्यक्रम समन्वयक डॉ. डी. के. वाणी ने इस वर्ष खरीफ मौसम में की गई गतिविधियों का विवरण प्रस्तुत किया। इसके पष्चात कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों सर्वश्री वाय.के. षुक्ला ने मृदा विज्ञान, रूपेष जैन ने पषुपालन, विनोद राजपूत ने उद्यानिकी, सुभाष रावत ने कृृषि विस्तार, एम.के.गुप्ता ने कृृषि अर्थ एवं रष्मि षुक्ला ने कृृषि में महिलाओं विषय पर अपनी कार्य योजना प्रस्तुत की। प्रभारी अधिष्ठाता डा. षास्त्री अधिष्ठाता ने उद्यानिकी फसलों में ज्यादा गतिविधियों की अवाष्यकता बतलाई। उन्होने अनार के  क्षेत्र में कार्य करने पर बल दिया तथा हाइड्रोपोनिक चारा उत्पादन ईकाई को प्रारम्भ करने का सुझाव दिया।  
निदेषक विस्तार डॉ. एस. के श्रीवास्तव ने फसल उत्पादन हेतु विभिन्न स्त्रोतों की सीमितत जैसे जल की उपलब्धता, मौसम की अनिष्चतता, भूमि की उर्वरता व जीवांष स्थिति आदि को ध्यान में रखते हुए कार्य योजना तैयार करने को कहा । डा. श्रीवास्तव ने कृषकों  को अपने खेतों में मौसम की प्रतिकूलता से निपटने हेतु कम से कम तीन प्रकार की फसलें व तीन प्रकार की किस्में  लगाने का सुझाव दिया क्योंकि विभिन्न फसलों व किस्मों में प्रतिकूल परिस्थितियों में विकास की सम्भावनाएॅ अलग अलग होती है। उन्होने प्रत्येक प्रयोग की आर्थिकी निकालने के बाद अनुषंसा करने को कहा। डा. पटैरिया ने पषुओं में नस्ल संरक्षण एवं सुधार पर कार्य करने हेतु सुझाव दिया।
 उद्यानिकी विभाग के श्री पॅंवार ने ड्रिप पद्धति व मेढ पर प्याज लगाने की प़द्धति कोे बढावा देने का सुझाव दिया। कृषक श्री भगवान भाई ने प्रदर्षनों की संख्या बढानें व मिर्च में वायरस नही लगे ऐसी तकनीकी के विस्तार का सुझाव दिया।  कार्यक्रम का संचालन डॉ. मुकेश गुप्ता एवं आभार प्रदर्षन डा. जैन ने किया। 

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