नरवाई जलाने से नष्ट होती है मिट्टी की उर्वरता
खण्डवा 24 मार्च, 2016 - वर्तमान में जिले में गेहूॅं कटाई का कार्य चल रहा है। फसल की कटाई के बाद अगली फसल के लिए किसानों द्वारा नरवाई फसल के डंठलों को जलाकर साफ किया जाता है। नरवाई जलाने से व्यापक स्तर पर अग्नि दुर्घटनाएं होती हैं जिससे जन-धन की हानी होती है। नरवाई में आग लगाने से जहां एक ओर मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती है, वहीं इसके कई गंभीर परिणाम भी सामने आते हैं। भूमि में उपलब्ध जैव विविधता समाप्त हो जाती है। उपसंचालक कृषि श्री ओ.पी. चौरे ने बताया कि भूमि में उपस्थित सूक्ष्म जीव जलकर नष्ट हो जाते हैं। सूक्ष्मजीवों के नष्ट होने के फलस्वरूप जैविक खाद का निर्माण बंद हो जाता है। भूमि की ऊपरी पर्त में ही पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व उपलब्ध रहते हैं। आग लगाने के कारण ये पोषक तत्व जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही भूमि कठोर हो जाती है जिसके कारण भूमि की जल धारण क्षमता कम हो जाती हैं और फसलें जल्दी सूखती हैं। खेत की सीमा पर लगे पेड़ पौधे जलकर नष्ट भी हो जाते हैं।
नरवाई में आग लगाने के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। वातावरण के तापमान में वृद्धि होती है जिससे धरती गर्म होती है। कार्बन से नाइट्रोजन तथा फास्फोरस का अनुपात कम हो जाता है। इसके साथ ही खेत की आग के अनियंत्रित होने पर जन, संपत्ति व प्राकृतिक वनस्पति, जीवजन्तु आदि नष्ट हो जाते हैं, जिससे व्यायपक नुकसान होता है। आग लगने से हानि कारक गैसों का उत्सर्जन होता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहंुचता है। किसानों को सलाह दी गई है कि वे इन नुकसानों से बचने के लिए नरवाई में आग न लगाएं।
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