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Tuesday 27 June 2017

सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह

सोयाबीन कृषकों के लिए उपयोगी सलाह 

खण्डवा 23 जून 2017 - जिले में दो सप्ताह पूर्व हुई मानसून पूर्व वर्षा को देखते हुये किसानों द्वारा सोयाबीन की बोवनी की गई है। अतः जिन किसानों ने सोयाबीन की बोवनी की है, नवजात पौधों को बचाने एवं नमी संरक्षण हेतु डोरा/कुल्पा चलाने की सलाह दी जाती है। उपसंचालक कृषि श्री ओ.पी. चौरे ने बताया कि ऐसे क्षेत्र जहां अभी तक सोयाबीन की बौवनी नही हुई है, उन किसानों को सलाह है कि वे मानसून के आगमन के पष्चात् लगभग 100 मी.मी. वर्षा होने पर ही सोयाबीन की बौवनी करे। इस स्थिति में सोयाबीन कृषको को सलाह दी जाती है कि मानसून के आगमन के पष्चात भूमि में पर्याप्त नमी (कम से कम 100 मि.मी. बारिष) होने की स्थिती में ही सोयाबीन की बौवनी करें। सोयाबीन के बीज का आकार एवं अंकुरण क्षमता के अनुसार छोटे दाने वाली प्रजातियों का बीज दर 55-60 कि.ग्रा./हे., मध्यम आकार - 60-65 कि.ग्रा/हे. एवं बडे़ दाने वाली किस्म के बीज का 70-75 कि.ग्रा/हे. रखे। उपलब्ध सोयाबीन बीज की अंकुरण क्षमता की जॉच करे जो कि न्यूनतम 70 प्रतिषत्् होना चाहिये इससे कम होने पर उसी अनुपात से बीज दर बढ़ाकर बौवनी करें। विभिन्न रोगों से बचाव विषेषतः मीला मोजाईक बीमारी के लिये सुरक्षात्मक तरीके के रूप में बौवनी के समय सोयाबीन के बीज को अनुषंसित फफूंदनाषक थायरम एवं कार्बेन्डाजिम 2ः1 अनुपात में (3 ग्राम/किग्रा. बीज) उपचारित करने के तुरंत बाद अनुषंसित कीटनाषक थायोमिथाक्सम 30 एफ.एस. (10 मि.ली./कि.ग्रा. बीज) या इमीडाक्लोप्रिड 48 एफएस (1.25 मी.ली./कि.ग्रा. बीज) से उपचारित करें। तत्पष्चात्् राइझोबिय पी.एस.एम. कल्चर का प्रयोग करें।
           इसी प्रकार रासायनिक फफूंदनाषक (थायरम/कार्बेन्डिजम) के स्थान पर जैविक फफंूदनाषक ट्रायकोडर्मा विरीडी (8-10 ग्राम/किग्रा. बीज) का उपयोग किया जा सकता है लेकिन इसका उपयोग कीटनाषक से उपचारित करने के पष्चात्् राइजोबियम पी.एस.एम. कल्चर के साथ में उपयोग किया जा सकता है। वर्षा की अनिष्चितता एवं सूखे की समस्या के कारण सोयाबीन की फसल में होने वाली संभावित उत्पादन में कमी को देखते हुए बी.बी.एफ. सीड ड्रील, फर्ब्स सीड ड्रील का उपयोग कर सोयाबीन की बौवनी करें। इन मषीनों की उपलब्धता न होने पर सुविधानुसार 6 से 9 कतारों के पष्चात्् देसी हल चलाकर नमी संरक्षण नारियॉ बनाएं। सोयाबीन की बौवनी करते समय बीज की गहराई (अधिकतम 3 से.मी.) एवं कतार से कतार की दूरी (45 सेमी.) का प्रयोग करें। सोयाबीन की फसल में पोषण प्रबंधन हेतु अनुषंसित पोषक तत्वों की मात्रा (25ः60ः40ः20 किग्रा./हे. नत्रजन, स्फूर, पोटाष एवं गंधक) बौवनी के समय ही सुनिष्चित करे। बौवनी के तुरंत बाद उपयोग में लाये जाने वाले अनुषंसित खरपतवार नाषक जैसे डायक्लोसूलम (26 ग्रा./हे.) या सल्फेन्ट्राजोन (750 मि.ली./हे.) या पेन्डीमिथलीन (3.25 ली/हे.) की दर से किसी एक खरपतवार नाषक का चयन कर 500 लीटर पानी के साथ फ्लड जेट या फ्लेट फेन नोझल (कट नोझल) का उपयोग कर समान रूप से खेत में छिड़काव करें। एकल पद्धति की तुलना में सोयाबीन की अंर्तवतीय खेती आर्थिक रूप से अधिक लाभकारी एवं स्थिर होती है। अतः किसानों को सलाह है कि सोयाबीन, मक्का, ज्वार, अरहर, कपास को 4ः2 के अनुपात में 30 से.मी. कतारों से कतारों की दूरी पर बौवनी करें। अंतर्वतीय फसल की स्थिती में केवल पेन्डीमिथलीन नामक बौवनी पूर्व खरपतवार नाषक का ही प्रयोग करें।     

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