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Thursday 25 May 2017

गौ-पालन को बनाया आजीविका का आधार

सफलता की कहानी

गौ-पालन को बनाया आजीविका का आधार
गाय के मृत शरीर से तैयार की जैविक खाद



खण्डवा 25 मई, 2017 - जिला मुख्यालय से करीब 20-25 किमी की दूरी पर बसा एक गांव-भकराडा जहां आज से करीब 15 साल पहले ग्राम के लोगों द्वारा गाय के मरने के पश्चात् उसे छूना भी पाप समझा जाता था, वहां आज गाय के मृत शरीर से तीन प्रकार की जैविक खाद-समाधि खाद, सिंग खाद और जीवामृत खाद तैयार की जा रही है । इस कार्य को अंजाम तक पहुचांया है इसी गांव में निवास करने वाले भूपेन्द्रसिंह पंवार और उनके बेटे बृजेन्द्रसिंह पंवार ने। 
      भूपेन्द्रसिंह ने अपनी मेहनत और लगन से ऐसी 4 गायों के पालन से अपना कार्य आरंभ किया जिनमेें से 2 गायों को उन्होंने कसाईयों से बचाया था और 2 गायों को लोग ऐसे ही छोड़ गये थे । विदित हो कि ग्रामों में जो पशु किसी काम के नहीं रहते उन्हें ऐसे ही छोड दिया जाता है । उन 4 गायों केे पालन और देखरेख से शुरू कार्य आज लगभग 160 गायों की देखरेख तक पहंुच गया है । आज वो बडे गर्व से कहते हैं कि गायों के गोबर से कण्डे, मृत शरीर से खाद, दूध से पंचगव्य घी आदि तैयार कर उनके बदले गायों के लिये भूसे का इंतजाम करता हूं पैसा नहीं लेता । इस प्रकार प्राचीन बार्टर सिस्टम वस्तु विनिमय से वे अपनी गायों को पालते है। ग्राम मंे गोपालन के प्रति जागृति लाने में उनका पूरा परिवार समर्पित हैं।
      भूपेन्द्रसिंह ने अपने बेटे बृजेन्द्रसिंह को सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय बनारस से संस्कृत में एम.ए.की शिक्षा दिलाई लेकिन आज वो उनके साथ गायों की देखरेख में हाथ बंटाने के साथ-साथ औषधि निर्माण और अन्य हर्बल उत्पाद घर पर ही तैयार कर ग्रामवासियों को जागरूक करने का कार्य कर रहा है । बृजेन्द्र स्वयं बताता है कि गाय के गोबर में गिलोय पावडर व नीम मिलाकर कण्डे बनाते हैं जिन्हें एक विधि के तहत तेल या घी लगाकर गड्डों के अंदर जलाकर चिकनी राख बनाई जाती है और उससे साबुन तैयार करते है जिसके इस्तेमाल से त्वचा रोग नहीं होते । इसी प्रकार कचरे से खाद, गोबर से गैस बनाने के छोटे प्लाण्ट घर में ही लगाये गये है। 
       साथ ही बृजेन्द्रसिंह ने घर में एक बगीचा बनाकर लौकी उगाई है जिससे बालों के लिये तेल बनाते है जो बालों को झडनें से रोकने के साथ ही डेन्ड््रफ से मुक्ति दिलाता है। जंगली तुलसी में गिलोय एवं नीम मिलाकर धूपबत्ती बनाते है जो पूजन कार्य में उपयोगी होने के साथ ही मच्छरों को भगाने का कारगर उपाय है । इसी प्रकार चाय, शैम्पू, केशतेल आदि 28 प्रकार के उत्पाद घर में ही इनके द्वारा तैयार किये जा रहंे है ।
      इन उत्पादों के अतिरिक्त गौमूत्र, गोबर आदि के इस्तेमाल से अनेक औषधियों का निर्माण भी कर रहे हैं जो लकवा, त्वचा रोग, दाद, खाज, मासिक धर्म के दौरान होने वाली परेशानियों, नेत्र रोग, पाचन क्रिया से संबंधित रोग, मधुमेह, हृदय रोग जैसी बीमारियों के उपचार में भी कारगर है। मानव रोगों के उपचार के लिए इन्होंने घर पर ही 3 प्रकार के अर्क तैयार किये है-नारी संजीवनी, शतावरी, मधुमेह हरी । इनका दावा है कि इनके द्वारा जो हवन सामग्री और कण्डे तैयार किये जा रहे है वो मिथाइल आइसो सायनाइड जैसी जहरीली गैस के दुष्प्रभावों को भी दूर करने में समर्थ है। ये देश एवं प्रदेश में विभिन्न जगहों पर अपने उत्पादों का प्रदर्शन कर चुके हैं और अनेक बार पुरस्कृत भी किये जा चुके है । 
         बाप-बेटे दोंनों ने मिलकर 30-35 लोेगों की एक टीम का गठन भी किया है जो सूचना मिलते ही गोवंश को अवैध तरीके से कटने के लिये ले जाई जा रही गाडियों को बीच में ही रोककर उन्हें मुक्त करा लेते हैं और फिर उनकी देखभाल करते हैं । यह टीम ग्राम के बीमार पशुओं का निःशुल्क इलाज भी करती है । अब शासन से भी इनकी गौशाला को कुछ आर्थिक सहायता मिलने लगी है। इस प्रकार दोनों बाप-बेटों ने गौसंरक्षण एवं गौउत्पादों के प्रति जनजागृति का अभियान छेड रखा है और अब समस्त ग्रामवासी भी इन्हें सहयोग करने लगे हैं । इनकी मंशा है कि इनके हुनर को पहचाना जाये और आजीवन गायों की सेवा करते रहे और लोगों को भी इस हेतु जागरूक कर सकें।  

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