पाले से निपटने के लिए किसान भाइयों के लिए उपयोगी सलाह
खण्डवा 01 जनवरी, 2019 - पाला पड़ने से फसलों को हो सकता है नुकसान ,बचाव की तैयारी रखे। इस साल सर्दी कुछ ज्यादा पड़ने वाली है, यह हालात बता रहे है। पाला पड़ना यानी कड़ाके की सर्दी होना, ऐसे में फसलों और उद्यानिकी फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। हर साल पाले से फसलों का काफी नुकसान होता है। पाले से पौधों की कोमल टहनियां, पत्ते, फूल व फलियां झुलस जाती है, इससे पैदावार भी घटती है तथा कभी-कभी पौधे शत प्रतिशत मर जाते है। वैसे तो यह आपदा प्राकृतिक है,लेकिन इससे बचा जा सकता है।
उपसंचालक कृषि श्री आर.एस. गुप्ता ने बताया कि रबी फसलों में आलू, मटर, टमाटर, सरसों, बैंगन, अलसी, धनिया, जीरा, अरहर, शकरकंद तथा फलों में पपीता व आम पाले के प्रति अधिक संवेदनशील है। पाले की तीव्रता अधिक होने पर गेंहू, जौ, गन्ना आदि फसलें भी इसकी चपेट में आ जाती है। उन्होंने बताया कि जहां पाला ज्यादा पड़ता हो वहां ऐसी फसलें बोये, जिनको पाले से कम से कम नुकसान होता हो, जैसे-चुकंदर, गाजर, मूली, । उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि उचित किस्म का चुनाव फसलों की पाला रोधी किस्मों की बुआई करें। पाला पड़ने की संभावना 15 दिसंबर से 15 फरवरी तक अधिक रहती है। बुआई के समय इस बात का ध्यान रखें कि फूल आने व फली बनने की अवस्थायें पाला पड़ने के चरम समय में ना आयें।
पाला पड़ने का पूर्वानुमान होने पर खेत में शाम को सूखी घास-फूस, सूखी टहनियां, पत्तियां, पुआल एवं गोबर के उपले आदि में आग लगाकर धुआं करना चाहिए। खेत में हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि भूमि एवं वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ जाये। इससे तापमान जमाव बिंदु तक नहीं पहुँचता और फसल पर पाले का असर नहीं होता है। फव्वारा सिंचाई की सुविधा हो तो दो घंटे फव्वारा चलाकर हल्की सिंचाई कर सकते है। पाला पड़ने का पूर्वानुमान होने पर 1000 लीटर पानी में 1 लीटर गंधक के तनु अम्ल का घोल बनाकर छिड़काव करें। इससे पौधों की कोशिकाओं में पाला सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है। कोशिकाओं के अंदर का जल जम नहीं पाता है। इसके अलावा डाई मिथाइल सल्फो ऑक्साइड का फसल में 50 प्रतिशत फूल आने पर 78 ग्राम प्रति हेक्टेयर 700 से 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर सकते है।
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