खुशियों की दास्तां
परम्परागत खेती छोड़ संतरे का बगीचा लगाया,तो गौरव के जीवन में आयी खुशहाली
खण्डवा 22 फरवरी, 2019 - जिले के हरसदू विकासखण्ड के ग्राम पलानीमाल निवासी किसान श्री गौरव पालीवाल पुत्र स्व. श्री रामचंदर पालीवाल के पास 6.40 हेक्टेयर पैत्रक कृषि भूमि है। इस भूमि की आमदनी से ही परिवार की गुजर बसर होती आ रही थी। खेती के अलावा अन्य कोई व्यवसाय नहीं था। गौरव की शिक्षा भी बहुत अच्छी नहीं थी और खेती की भूमि भी असिंचित है। हमेशा से खरीफ के मौसम में ज्वार, मक्का, उड़द सोयाबीन व रबी के मौसम में गेहू, चना, सरसों, धनिया आदि फसलें होती आई थी। इन परम्परागत फसलो की खेती में प्रकृतिक प्रकोप से अत्याधिक नुकसान होता था। उद्यान विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन पर गौरव पालीवाल ने संतरें की खेती प्रारंभ की तो परम्परागत खेती की तुलना में लगभग चार गुनी आय होने से गौरव के जीवन में खुशहाली छा गई है।
गौरव पालीवाल बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2014 में इंदिरा सागर बांध के बेकवाटर से पानी खेत में लाने हेतु पाइप लाइन की व्यस्था भी की जिसमे लगभग 8 लाख रूपए का खर्च आया। साथ ही टपक सिचाई प्रणाली की स्थापना कराई और लगभग 2 हेक्टेयर क्षेत्र में संतरे के बगीचा का विस्तार किया और जिसका उत्पादन वर्तमान में आना प्रारम्भ हो गया है। इस साल ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी श्री अंकुर सिरोठिया के मार्गदर्शन में उद्यानिकी विभाग की नमामी देवी नर्मदे फल क्षेत्र विस्तार योजना के अंतर्गत गौरव पालीवाल ने 2 हे. क्षेत्र में संतरे के 1000 पोधो का रोपण उच्च घनत्व ड्रिप सहित योजना में कराया। इस योजना मंे विभाग से समय समय पर अनुदान एवं उचित मार्गदर्शन अधिकारियो द्वारा दिया गया।
गौरव पालीवाल ने बताया कि उसके संतरें के बगीचे के 400 पेड़ों में फल आ रहे है, जिसे देखकर दिल खुश हो जाता है। श्री पालीवाल ने बताया कि इस वर्ष उसका बगीचा 6 लाख 85 हजार रूपए में बिका है साथ ही अतरर्वर्ती फसलों से उसे अतिरिक्त आय प्राप्त होने लगी है। कुल मिलाकर देखा जाये तो 2 हेक्टेयर के फलन बाग से लगभग 7 से 8 लाख रूपए की आय होने की उम्मीद है। जबकि इस पर लागत लगभग 2 से ढाई लाख रूपए आयी है। इस तरह सतरें की फसल से शुद्ध लाभ 4.50 से 5 लाख रूपया हुई। जबकि परम्परागत फसलो में यदि मौसम अनुकूल रहे तो भी समस्त खर्चे निकलने के बाद भी 1 लाख रूपए की आमदनी नहीं होती थी। गौरव पालीवाल ने बताया कि कोई भी किसान अपनी कुल कृषि योग्य भूमि में से उसके 40 प्रतिशत क्षेत्र में फलदार बगीचा उद्यान विभाग के मार्गदर्शन में लगाये तो उसे परम्परागत खेती की तुलना में कही अधिक आय प्राप्त हो सकती है।
No comments:
Post a Comment