गौ-वंश के सम्मानजनक संरक्षण के लिए प्रदेश सरकार ने की है विशेष पहल
खण्डवा 20 नवम्बर, 2019 - प्रदेश में निराश्रित गौ-वंश का पालन-पोषण और समुचित सुरक्षा दिए जाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने सभी जिलों में एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत गौ-शालाएं स्थापित करने का निर्णय लिया है। गौ-वंश हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी है। ग्राम्य-जीवन में गाय इतनी रच-बस गई है कि दोनों को अलग कर देख पाना कठिन है। गाय केवल आय अथवा रोजगार का साधन ही नही है, बल्कि सदैव से हमारी संस्कृति, परंपरा और आस्था के केन्द्र में रही है। गाय ने देश के जन और जीवन को अनमोल उत्पादों से समृद्ध किया है। परहित का गाय जैसा कोई उदाहरण नहीं हो सकता, क्योंकि गाय का पूरा जीवन और उससे प्राप्त पंचगव्य मंगलमय जीवन के लिए वरदान है। गाय का दूध, दही, घी, गोबर और गौ-मूत्र का उपयोग मनुष्य को स्वस्थ तथा निरोगी बनाता है।
प्रदेश में एक समयबद्ध कार्यक्रम के तहत 1000 गौ-शालाएं स्थापित की जा रही हैं। इनमें ऐसे 966 गौ-शालाओं का स्थल चयन और गौ-शालाओं की स्वीकृति जारी है। कुल 727 स्थानों पर निर्माण कार्य प्रारंभ हो चुके है, शेष पर भी कार्य शीघ्र प्रारंभ किया जायेगा। प्रत्येक गौ-शाला के साथ ही 5 एकड़ भूमि पर चारागाह भी बनाए जा रहे है। इस वित्तीय वर्ष 2019-20 में गौ-शाला निर्माण का लक्ष्य पूर्ण कर लिया जायेगा। इन गौ-शालाओं के निर्मित होने पर लगभग एक लाख गौ-वंश का संरक्षण होगा।
गौ-शालाओं का संचालन ग्राम पंचायतें, महिला स्वसहायता समूह, स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया जायेगा। गौ-शालाओं का निर्माण कार्य पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा मनरेगा और पंचायती-राज योजनाओं के माध्यम से होगा। ग्राम पंचायतें गौ-शाला निर्माण का दायित्व निभायेंगी। गौ-वंश के लिए चारे के लिए प्रतिदिन के मान से दिये जाने वाला अनुदान चार रूपये से बढाकर बीस रूपये किया गया।
प्रदेश की नई सरकार ने अपने पहले बजट में गौ-वंश और पशुओं के संवर्धन के लिए अतिरिक्त 132 करोड रूपये का प्रावधान किया है। गौ-शालाओं के संचालन हेतु अनुदान पशुपालन विभाग द्वारा किया जायेगा। गौ-शालाओं को रोजगारोन्मुखी बनाने, लकडी की खपत कम करने और पर्यावरण को बचाने के उद्देश्य से वहां उपलब्ध गोबर को लकडी में परिवर्तित किया जाता है। विभिन्न जिलों की 100 गौ-शालाओं में गोबर से लकडी बनाने की मशीनों की स्थापना के लिए अनुदान प्रदाय किया गया है।
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