तेज ध्वनि के पटाखों का उपयोग पर्यावरण के लिये हानिकारक
खण्डवा 24 अक्टूबर, 2019 - दीपावली प्रकाष का पर्व है, इस दौरान विभिन्न प्रकार के पटाखों का उपयोग बड़ी मात्रा में किया जाता है। पटाखों के ज्वलनषील एवं ध्वनि कारक होने के कारण परिवेषीय वायु में प्रदूषक तत्वों एवं ध्वनि स्तर में वृद्धि होकर पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ-साथ पटाखों के जलने से उत्पन्न कागज के टुकड़े एवं अधजली बारूद बच जाती है तथा इस कचरे के संपर्क में आने वाले पषुआंे एवं बच्चों के दुर्घटनाग्रस्त होने की संभावना रहती है।
वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना अनुसार 125 डीबी (एआई) या 145 डीबी (सी) से अधिक ध्वनि स्तर जनक पटाखों का विनिर्माण, विक्रय या उपयोग वर्जित किया गया है। उच्चतम न्यायालय द्वारा रिट-पिटीषन (सिविल) ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के परिप्रेक्ष्य में 18 जुलाई 2005 को निर्णय में दिए गए निर्देषानुसार रात्रि 10 बजे से प्रातः 6 बजे तक ध्वनि कारक पटाखों का उपयोग पूर्णतः प्रतिबंधित है। पटाखों के जलाने के उपरांत उनसे उत्पन्न कचरे को ऐसे स्थानों पर न फेंका जाए, जहां पर जल स्त्रोत प्रदूषित होने की संभावना है, क्योंकि विस्फोटक सामग्री खतरनाक रसायनांे से निर्मित होती है। साथ ही नगरीय निकायों को निर्देष दिये गये हैं कि पटाखों से उत्पन्न कचरे को पृथक से संग्रहित करके उसका सुरक्षित निष्पादन सुनिष्चित करें।
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