किसान भाई फसल नरवाई खेतों में न जलावें बल्कि उससे लाभ प्राप्त करें
खण्डवा 23 फरवरी, 2017 - वर्तमान में किसानांे द्वारा फसल कटाई उपरांत बचे फसल अवषेषों (नरवाई) को खेतों में जलाने की परंपरा सी बन गई है, जिसके कारण प्रमुख रूप से निम्न हानियां होती है। सर्वप्रथम फसलें नरवाई से पशुओं को प्राप्त होने वाले चारे की क्षति होती है एवं ये फसल अवषेष खेतों में सड़कर कम्पोस्ट खाद पूर्ति भी अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करते है, जो कि फसल अवषेष जलाने से कम्पोस्ट खाद प्राप्त नहीं होती है। उपसंचालक कृषि श्री ओ.पी. चौरे ने बताया कि नरवाई जलाने से कई बार ग्रामों में आग भी लग जाती है, जिससे जन धन की हानि होती है। साथ ही पर्यावरण को भी बहुत नुकसान होता है। इसके अलावा खेत में रहने वाले सूक्ष्मजीव, कार्बनिक पदार्थ आदि भी नष्ट हो जाते है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है। माननीय नेषनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के द्वारा दिये गये निर्णय के अनुसार भविष्य में नरवाई जलाने की प्रथा को बंद किया जावें। अतः किसान भाईयों से अपील की जाती है कि किसान भाई फसल अवषेषों को जलाना बंद करें। यदि किसान नरवाई जलाने की प्रथा को बंद नहीं करेगे तो भविष्य में उन पर उपरोक्त लिखित निर्णय की अवमानना होने से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत् कार्यवाही भी की जा सकती है। अतः किसान भाईयों को यह सलाह दी जाती है कि फसल अवषेषों के उचित प्रबंधन हेतु किसान भाई निम्न तरीके उपयोग में लावे। किसान भाई इन फसल अवषेषों मे स्ट्रा रीपर का उपयोग कर फसल अवषेषो का पषुओं के चारा उपयोग कर सकते है। मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई कर खेतों में अवषेषों को दबाये जिससे यह सड़कर कम्पोस्ट खाद खेतो को प्रदाय करेंगे। इससे किसानों को अािर्थत लाभ भी प्राप्त होगा। कटाई हेतु रीपर कम बाईन्डर का उपयोग करें जिससे फसल को काफी नीचे से काटा जाता है। इस कारण फसल अवषेष (नरवाई) को जलाने की आवष्यकता भी नही पड़ती। अंत में किसान भाईयों के अतिरिक्त ग्राम पंचायत के सरपंच एवं अन्य जनप्रतिनिधीयों से भी आग्रह है कि उक्त कार्य हेतु किसानों में इस बाबत सलाह देकर किसानों में जागरूकता पैदा करने की भी अपील की जाती है।
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