सफलता की कहानी
डिस्पोजल सामग्री के व्यवसाय ने राजंती बाई को बनाया आत्मनिर्भर
खण्डवा 29 जनवरी, 2018 - खण्डवा जिले के वीरपुर जूनापानी ग्राम की रहने वाली राजंती बाई का पूरा समय घर गृहस्थी और बच्चों के पालन पोषण में गुजर रहा था। उसका पति अनिल धामने गांव में कारीगरी का व्यवसाय कर मकान निर्माण कार्य में लगा रहता था। परिवार में 2 बच्चे होने के बाद घर की जरूरतें बढ़ने लगी तो राजंती बाई को लगा कि अब पति के साथ साथ उसे भी घर में ही छोटा मोटा व्यवसाय प्रारंभ कर परिवार की आय बढ़ाने में भागीदारी करना चाहिए। एक दिन राजंती बाई को उसके पति अनिल ने बताया कि घर बैठे दोना पत्तल बनाने का व्यवसाय आसानी से किया जा सकता है, जिससे 200 से 300 रूपये रोज तक आसानी से कमाएं जा सकते है। अनिल ने इसके लिए खण्डवा स्थित अन्त्यवसायी सहकारी समिति के कार्यालय जाकर पूछताछ की और आवेदन भी कर दिया, कुछ ही दिनों में राजंती बाई के नाम से 1.50 लाख रूपये का प्रकरण स्वीकृत हो गया, जिसमें 45 हजार रूपये अनुदान भी उसे मिल गया। अब राजंती बाई अपनी सास लीला बाई के साथ दोपहर में और रात के समय जब फुर्सत रहती है, दोनों मिलकर मषीन से दोने पत्तल बनाती है, जिससे हर माह 10 हजार रूपये से अधिक की आय हो जाती है।
राजंती बाई के पति अनिल धामने ने बताया कि पत्नि की इच्छा का सम्मान करते हुए वह दोना पत्तल व्यवसाय में उसे हर संभव मदद करता है। इस व्यवसाय को और अधिक बढ़ाने के उद्देष्य से अनिल इंदौर से डिस्पोजल , गिलास, चम्मच, प्लेटे, आदि सामग्री भी थोक में लाकर बेचता है। अनिल ने बताया कि वह आसपास के गांव मंे तथा खण्डवा के दुकानदारों को डिस्पोजल सामग्री घर बैठे उपलब्ध कराता है, इससे उसे अतिरिक्त आय प्राप्त हो जाती है। राजंती बाई ने बताया कि वो हर माह 3200 रूपये की ऋण की किष्त नियमित रूप से चुकाती है। कक्षा 10वीं तक पढ़ी लिखी राजंती बाई का मानना है कि मायके और ससुराल में जो गरीबी उसने देखी वैसी उसके बच्चे न देखें, इसके लिए वह दिनरात मेहनत कर अपने बेटे अथर्व के नाम से स्थापित ‘‘अथर्व डिस्पोजल हाउस‘‘ का संचालन कर रही है। राजंती बाई चाहती है कि उसके द्वारा की गई मेहनत से प्राप्त अतिरिक्त आय से वो अपने बच्चों को अच्छी षिक्षा दिलाये, जिससे उनका भविष्य उज्जवल हो सके।
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