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Tuesday 25 March 2014

किसान भाई फसल अवषेष (नरवाई) नहीं जलायें अग्नि दुर्घटना संभावना के साथ ही उर्वरता पर भी पड़ता है विपरीत असर नरवाई को जलाने की अपेक्षा जैविक खाद बनाने में करें उपयोग

किसान भाई फसल अवषेष (नरवाई) नहीं जलायें
अग्नि दुर्घटना संभावना के साथ ही उर्वरता पर भी पड़ता है विपरीत असर
नरवाई को जलाने की अपेक्षा जैविक खाद बनाने में करें उपयोग

खंडवा (25 मार्च, 2014) - गेंहू काटने के बाद बचे हुये फसल अवषेष जलाना खेती के लिये आत्मघाती हो सकता है। इससें अन्य खेतों में अग्नि दुर्घटना की संभावना तो रहती ही है किन्तु मिट्टी की उर्वरता पर भी विपरीत असर पड़ता है। इसके साथ ही धुएं से उत्पन्न कार्बनडाई आक्साईड से वातावरण का तापमान बढ़ता है और प्रदूषण में वृद्धि भी होती है।
                     खेती की उर्वरक परत लगभग 6 इंच की ऊपरी सतह पर ही होती है। इसमंे तरह-तरह के जीवाणु उपस्थित रहते हैं, जो खेती को कई तरह से लाभ पंहुचाते हैं। नरवाई जलाने से उच्च तापमान में उपजाऊ मिट्टी की दषा ईट बनाने की प्रक्रिया की तरह कड़ी और जिवाणु रहित हो जाती है। जो धीरे-धीरे बंजरता की ओर बढ़ने लगती है।
                      नरवाई जलाने की अपेक्षा यदि फसल अवषेषों और डंठलांे को एकत्र कर जैविक खाद जैसे-भू नाडेप, वर्मी कम्पोस्ट आदि बनाने में उपयोग किया जावें तो वे बहुत जल्दी सड़कर पोषक तत्वों से भरपूर खाद बना सकते है। इसके अतिरिक्त खेत में कल्टीवेटर, रोटावेटर या डिस्कहेरो आदि की सहायता से फसल अवषेषों को भूमि में मिलानें से आने वाली फसलों में जीवांष के रूप में खाद की बचत की जा सकती है। किसान सामान्य हार्वेस्टर्स से गेंहू कटवाने के स्थान पर स्ट्रा रीपर एवं हार्वेस्टर्स का प्रयोग करें तो पषुओं के लिये भूसा और खेत के लियें बहुमूल्य पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ने के साथ मिट्टी की संरचना को बिगड़ने से भी बचाया जा सकता है। दूसरी और नरवाई जलाने से अपनी या अन्य किसानों की फसल, घर, मवेेषी, आदि को भी भीषण नुकसान पहुँच सकता है। इस संबंध में राजस्व विभाग द्वारा स्थानीय स्तर पर कानूनी कार्यवाही भी की जा सकती है।
                      उपसंचालक किसान कल्याण एवं कृषि विभाग ने संबंधितों को निर्देश दिये है कि व्यापक स्तर पर सघन अभियान छेड़कर किसानों को समझाईश दी जाये कि किसी भी परिस्थिति में नरवाई न जलाएं। इसके लिये पंचायत स्तर पर नरवाई न जलाने के संबंध मे स्लोगन लिखवाए जाने, किसान दीदी, किसान मित्रों, सम्पर्क कृषकों, पंचायत प्रतिनिधियों आदि की सहायता से प्रत्येक ग्राम स्तर तक इस विषय की जानकारी पहंुचाई जाने, पंचायत स्तर पर कोटवारों द्वारा डोंडी पीटकर नरवाई न जलानें के संबंध में प्रचार-प्रसार करने, प्रत्येक ग्राम में कृषकांे की बैठक का आयोजन कर ग्रामीणों को नरवाई जलाने मे नुकसान तथा कचरे और फसल अवषेषों मे उपयोगी जैविक प्रबंधन की ठोस किन्तु व्यवहारिक जानकारी दी जावे।
क्रमांक: 136/2014/494/वर्मा

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