खरीफ फसल में सोयाबीन उत्पादक किसानों के लिये उपयोगी सलाह
खण्डवा 2 जुलाई, 2016 - सोयाबीन अनुसंधान एवं विकास प्रणाली द्वारा अनुषंसित तकनीकी के अनुसार सोयाबीन की बौवनी के लिए सामान्यतः 7 जुलाई तक उपयुक्त समय होता है। वर्तमान परिस्थिति में कृषकों को सलाह दी जाती है कि विगत सप्ताह जहां पर सोयाबीन की बौवनी हुई है वहां पर सूखे की स्थिति में सिंचाई फव्वारा या टपक पद्धति से करें जिससे कि सोयाबीन के अंकुरण निष्चित हो सके। उप संचालक कृषि श्री ओ.पी. चौरे ने बताया कि अंकुरित हो रहे सोयाबीन के बीजपत्र या नवजात पौधों को पक्षियों के चुगने से बचाने के लिये सुबह एवं शाम के समय पक्षियों को उड़ाने की व्यवस्था करें। जिन क्षेत्रों में सोयाबीन की बौवनी नही हुई हैं, विभिन्न रोगों से बचाव विषेषतः पीला मोजेक बीमारी के लिये सुरक्षात्मक तरीके अपनाये। बौवनी के समय सोयाबीन के बीज को अनुषंसित फफूंदनाषक थायरम एवं कार्बेन्डाजिम 2ः1 अनुपात में 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करने के तुरंत बाद अनुषंसित कीटनाषक थायोमिथाक्सन 30 एफ.एस. करने के तुरंत बाद अनुषंसित कीटनाषक थायोमिथाक्सन 30 एफ.एस. 10 मिली लीटर प्रति किलोग्राम बीज या इमीडाक्लोप्रिड 48 एफ.एस. 1.25 मिली लीटर प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करने की सलाह किसानों को दी गई है।
उप संचालक कृषि श्री चौरे ने बताया कि रासायनिक फफूंदनाषक थायरम या कार्बेन्डिजम के स्थान पर जैविक फफूंद नाषक ट्रायकोडर्मा विरीडी 8-10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज का उपयोग करने के पष्चात राइजोबियम पी.एस.बी. कल्चर के साथ में उपयोग किया जा सकता है। सोयाबीन की बौवनी के तुरंत बाद एवं सोयाबीन के उगने से पूर्व उपयोगी खरपतवारनाषक पेन्डीमिथलीन 3.25 लीटर प्रति हेक्टर या डायक्लोसुलम 26 ग्राम प्रति हेक्टेर की दर से किसी एक खरपतवार नाषक दवाई का उपयोग कर खरपतवार का प्रबंधन आसानी से कर सकते है।
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