राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस 10 फरवरी को
खण्डवा 15 जनवरी ,2016 - राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस आगामी 10 फरवरी को मनाया जाएगा। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया किं इस दिवस पर 1 से 2 वर्ष, तथा 2 से 19 वर्ष तक के सभी स्कूली बच्चों व आंगनवाड़़ी केन्द्र में कृमि नाशक दवाई बच्चों को खिलाई जायेगी, शाला त्यागी बच्चों को भी 10 फरवरी को एल्बेंडाजोल गोली खिलाई जावेगी, यह गोली खाने से बच्चों के पेट में होने वाले कीड़े (कृमि) से बचाता है । उन्होंने बताया किं प्रत्येक आंगनवाड़ी केन्द्र, स्कूलों में साथ ही शाला त्यागी बच्चों को 10 फरवरी को एल्बेंडाजोल गोली एक साथ खिलाई जायेगी , इसके लिए ब्लॉक स्तर पर भी आशा, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, ए.एन.एम., शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जायेगा ।
नोडल अधिकारी श्रीमती अनिता शुक्ला ने कृमि नाशक एवं कार्यक्रम की रूपरेखा व पूर्व तैयार की विस्तृत जानकारी दी । कार्याशाला में मनीष शर्मा व्दारा कृमिनाशक से होने वाले प्रतिकुल प्रभावों के बोरे में बताया किं कृमि होने से बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है । कृमि कई कारणों से बच्चे के पेट पहुंच सकते है जैसे- नगे पैर खेलने, बिना हाथ धोये खाना खाने, खुले में शौच करने, साफ सफाई ना रखन से होते है और कृमि होने से खून की कमी (एनीमिया) कुपोषण, भूख न लगना थकान और बेचैनी, पेट में दर्द मिलती, उल्टी और दस्त आना, मल से खून आना, आदि हानिकारक प्रभाव पड़ते है । बच्चों को कृमि नाशक देने से कई तरह के लाभों होते जैसे खून कमी में सुधार आना, बेहतर पोषण स्तर , रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद, स्कूल और आंगनवाड़ी केन्द्रों में उपस्थिति तथा सीखने की क्षमता में सुधार लाने में मदद करता है ।
नोडल अधिकारी श्रीमती अनिता शुक्ला ने कृमिनाशक से होने वाले प्रतिकूल प्रभावों के बारे में बताया किं बच्चों के पेट में कृमि होने से बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में वृद्धि अवरूद्ध हो जाती है । ये कृमि/कीडे कई कारणों से बच्चे के पेट पहुंच सकते है जैसे- नगे पैर खेलने, बिना हाथ धोये खाना खाने, खुले में शौच करने, साफ सफाई ना रखन से होते है और कृमि होने से खून की कमी (एनीमिया) कुपोषण, भूख न लगना थकान और बेचैनी, पेट में दर्द मिलती, उल्टी और दस्त आना, मल से खून आना, आदि हानिकारक प्रभाव पड़ते है । बच्चों को कृमि नाशक देने से कई तरह के लाभों होते जैसे खून कमी में सुधार आना, बेहतर पोषण स्तर , रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद, स्कूल और आंगनवाड़ी केन्द्रों में उपस्थिति तथा सीखने की क्षमता में सुधार लाने में मदद करता है ।
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