‘राष्ट्रीय कृमिमुक्ति कार्यक्रम‘ का आयोजन 13 सितम्बर से 23 अक्टूबर तक
1 से 19 वर्षीय सभी हितग्राही वर्ग को एल्बेंडाजोल कृमिनाषक
गोली खिलाई जायेगी
खण्डवा 1 सितम्बर, 2021 - मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. डी.एस. चौहान ने बताया कि भारत शासन
के निर्देशानुरूप प्रदेश में राष्ट्रीय कृमिमुक्ति कार्यक्रम का आयोजन किया जाता
है जिसमें विद्यालयों एवं आंगनवाड़ी केन्द्र के माध्यम से 1 से 19 वर्ष के बच्चों
किशोर/किशोरियों को एल्बेंडाजॉल गोली का सेवन कराया जाता है । विदित हो कि विगत
वर्ष कोविड-19 महामारी को दृष्टिगत रखते हुए प्रदेश में ‘‘राष्ट्रीय कृमिमुक्ति
कार्यक्रम‘‘ का आयोजन समुदाय आधारित
गृह भ्रमण रणनीति के माध्यम से किया गया। तदानुसार वर्ष 2021-22 में भी सघन
कृमिमुक्ति के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रदेश के साथ ही जिले में 13 सितम्बर से
23 अक्टूबर 2021 तक समुदाय आधारित गृह भ्रमण रणनीति के माध्यम से किया जायेगा, जिसके अंतर्गत 1 से 19
वर्षीय समस्त हितग्राहियों को कृमिनाशन की दवा (एल्बेंडाजॉल) खिलाई जायेगी, ताकि मिट्टी जनित कृमि
संक्रमण की रोकथाम सुनिश्चित हो।
कोविड-19 के कारण प्रदेश
में विद्यालयों एवं आंगनवाड़ी केन्द्रों का संचालन संभव न होने की दशा में ‘‘ राष्ट्रीय कृमि मुक्ति
कार्यक्रम’’ का क्रियान्वयन समुदाय
आधारित गृह भ्रमण रणनीति के माध्यम से किया जायेगा, जिसमें स्वास्थ्य विभाग एवं महिला बाल विकास विभाग तथा शिक्षा
विभाग द्वारा समन्वय स्थापित कर वं रणनीति बनाकर आषा कार्यकर्ता, ए.एन.एम., आशा, आशा सहयोगिनी द्वारा
घर-घर जाकर 1 से 19 वर्षीय बच्चों को उम्र के अनुसार एल्बेंडाजॉल गोली का सेवन
कराया जायेगा।
डॉ. चौहान ने कहा कि उल्लेखनीय है कि बच्चों में कृमि संक्रमण
व्यकित्गत अस्वच्छता तथा संक्रममित दूशित मिट्टी के सम्पर्क से संभावित होता है, कृमि संक्रमण से बच्चों
को शरीर में प्रतिकुल प्रभाव पड़ते है, कृमि होने से बच्चों के शारीरिक, मानसिक विकास में वृद्धि
अवरूद्ध हो जाती है, कृमि कई कारणों से बच्चों
के पेट में पहुंच सकते है नगे पैर खेलने, बिना हाथ धोये खाना खाने, खुले में शौच करने, साफ सफाई ना रखने से होते है। कृमि होने से खून की कमी
(एनीमिया) कुपोषण, भूख न लगना थकान और
बेचैनी, पेट में दर्द मिलती, उल्टी और दस्त आना, मल से खून आना, आदि हानिकारक प्रभाव हो
सकते है। बच्चों को कृमि नाशक गोली खिलाने से कई तरह के लाभ होते है खून कमी में
सुधार आना, बेहतर पोषण स्तर, रोग प्रतिरोधक क्षमता
बढ़ना, स्कूल और आंगनवाड़ी
केन्द्रों में उपस्थिति बढ़ना तथा सिखने की क्षमता में सुधार लाने में मदद करती है।
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