कपास उत्पादक किसान के लिए उपयोगी सलाह
खण्डवा 12 सितम्बर, 2019 - उप संचालक कृषि श्री आर.एस. गुप्ता ने बताया कि कपास के पौधे में पद गलन एवं जड़ सड़न यह रोग राइजोक्टोनिया बटाटी कोला फफूंद से होता है। इसका लक्षण यह है कि पौधे को उखाड़ने पर आसानी से उखड़ जाएगा तथा यह बीमारी खेत में गोलाकार पेच के रूप में दिखाई देती है। पतली जड़े भूरी होकर सड़ जाती है। मुख्य जड़ को हाथ से स्पर्श करने पर छिलका आसानी से निकलने लगता है। इसके नियंत्रण के लिए किसान भाई प्रोपेकोनेजॉल दवा 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर पौधे पर स्प्रे करे या कार्बनडिज्म दवा 2 ग्राम प्रति लीटर के हिसाब से स्प्रे करें। खेत में सुमचित जल निकास का प्रबंध आवश्यक करें। कपास के साथ मोठ फसल लेने से यह रोग कम आता है। ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई करें।
उपसंचालक कृषि श्री गुप्ता ने बताया कि न्यू विल्ट निमाड़ क्षेत्र में यह बीामरी व्यापक रूप से फैल रही है। पौधें के पूरे बहार पर आते समय बी.टी. कपास में यह ज्यादा आती है। पौधा अचानक मुरझा जाता है। इसके नियंत्रण के लिए किसान भाई समुचित जल निकास करें तथा पौधों के जड़ों के पास यूरिया का घोल 1.5 कि.ग्रा. यूरिया 100 लीटर पानी में घोट बनाकर 1-1.5 लीटर प्रति पौधों के चारों और जड़ के पास दें। उन्होंने बताया कि अधिक बारिश के बाद धूप खिलने से तापमान में परिवर्तन के कारण रस चूसक कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है जैसे सफेद मक्खी, माहों आदि इसकी रोकथाम के लिए किसान भाई एसिटमिडप्रिड या थायोमिजाक्जाम 8 ग्राम दवा प्रति पम्प डाले या एसीफेट 20 ग्राम प्रति पम्प $ थायोमिथाक्जाम 8 ग्राम प्रति पम्प डालकर स्प्रे करें। सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए पीले ग्रीस पुते बोर्ड भी खेत में लगावें। रस चूसक कीट रोकथाम के उपाय यदि किसान भाई सामूहिक रूप से अपनाएं तो सफलता अधिक मिलती है। उपसंचालक कृषि श्री गुप्ता ने बताया कि जिले के सभी विकासखण्डों मंे जिला स्तरीय डायग्नोस्टिक टीम जिसमें कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विभाग के अधिकारी सतत भ्रमण कर रहे है एवं कृषकों एवं मैदानी अमले को सामयिक सलाह दी जा रही है।
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